जब माँ-बाप जीवन में चिंतामुक्त रहेंगे, तो उसका सीधा सा प्रभाव माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे के चहुमुखी विकास पर भी पड़ता है.
किसी संत ने कहा है कि ‘मन अनुकूलता ढूढता है’. जब हालात अनुकूल होते हैं, मन भी तब प्रसन्न रहता है.
महाभारत के कथानक में कहा जाता है कि अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में ही अपने पिता अर्जुन से चक्रव्यूह तोड़ने की जानकारी ले ली थी.
लेकिन चक्रव्यूह से बाहर निकलने की तरकीब सुनने से पहिले ही माँ सो गई. फिर, असली जीवन के युद्ध में, अभिमन्यु चक्रव्यूह तोड़कर बाहर नहीं आ सका.
महात्मा कहते हैं कि कोई भी जब संसार त्यागता है, तो जीवात्मा, मन, बुद्धि, प्रारब्ध और पांच गुणों (काम, क्रोध,लोभ, मोह और अहंकार) के साथ जन्म-जन्मान्तर की अपनी अगली यात्रा के लिए प्रस्थान करता है और वह किसी भी माँ - बाप के यहाँ बच्चे के रूप में जन्म लेता है.
जो, ऐसे सद्गुरु के शिष्य होते हैं, जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया होता है, वो आत्माएं इन बाहरी आवरणों से निर्लिप्त हो ब्रह्म में ही लीन हो जाती हैं.
कहा है- कीन्हो पंथ बिबिध परगासा, मुक्ति पंथ सतगुरु के पासा.
और भी - कर्म पहाड़ यह नहीं टरे , टारि सके कोई संत.
ज्ञान छेनी से काटिए, यह सतगुरु का मंत.
इसीलिए जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया होता है, उन्हें मृत्यु के उपरांत ब्रह्मलीन कहा जाता है.
उनकी आत्मा से जीव, मन, बुद्धि, प्रारब्ध और पांच गुण पारे की तरह फिसल जाते हैं. और वह आत्मा ईश्वर में ही विलीन रह जाती है. मुक्त हो जाती है. ऐसी अवस्था के लिए
कबीर जी ने कहा 1- राम कबीरा एक हुए हैं, कोई न सके पछाणी. 2- राम कबीर एक हैं, कहन सुनन को दोय . दो कर सोई जानई, सतगुरु मिला ना सोई .
इसीलिए सभी ग्रंथों में कहा गया है की समय के रहते सतगुरु की पहचान कर के अपना जन्म-मरण का चक्र समाप्त कर लो.
इसे ही अध्यात्म में भवसागर से पार होना कहा जाता है. और जो इस मार्ग को नहीं अपनाते हैं, उनके लिए दरिया साहब ने लिखा है - कोई नहीं बचे जन्म के फांसा , जो नहीं होए सतगुरु के दासा.
यह भी कहा जाता है- जिन्हें पुनः जन्म लेना होता है, उनके भी प्रकार हैं .
एक आत्म वो होती है, जो पुनर्जन्म का स्वयं निर्णय लेती है. ये स्वयं स्वामी ही होते हैं. जहाँ चाहें, जिस रूप में चाहें अवतरित हो सकते हैं. खुद ही मालिक है जब चाहे अवतार ले या न ले कोई इनका क्या कर लेगा.
बुल्लेशाह जी का कहना है कि इन्सान के रूप में होने के बावजूद सद्गुरु मनुष्य नहीं होता, मौला आदमी बण आया.
हमने यहाँ सद्गुरु शब्द का बहुत प्रयोग किया है, सद्गुरु वो, जो सत्य दिखाए, न कि सत्य का भ्रम पैदा करे कि इधर या उधर देखो, ये वस्तु लाओ, वो दान करो, ये कर्मकांड करो, यहाँ जाओ, वहां जाओ आदि. भाति - भांति के करके भाषण, असली बात बताए ना.
स्वामी विवेकानंद जी के यहाँ कोई दंपत्ति आए. अपने पांच साल के बच्चे को आगे करके कहने लगे स्वामी जी इसे भी विवेकानंद बना दो.
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा इसको जो बनना था, बन गया. अब अगर अपने बच्चे को स्वामी विवेकानंद बनाना है, तो उस समय आओ जब बच्चा चाहते हो. बच्चे के जन्म के पूर्व तुम्हें उस योग्य बनना होगा.
योग्य शिशु प्राप्त करने के लिए माता-पिता को उससे अधिक योग्य बनना होगा. क्योंकी लोहे से कंचन उत्पन्न नहीं हो सकता.
कंचन उत्पन्न करने के लिए कंचन से भी ऊपर पारस बनना होगा.
लोहे की भट्टी में आग की तपिश सहन करने की लोहे से ज्यादा ताकत होती है क्योंकि यही वो भट्टी होती है, जो उस तपिश पर भी नहीं पिघलती, जिसमें लोहा पिघल कर खौल रहा होता है.
इसलिए आपको योग्य माता-पिता वही बना सकता है, जिसमें इस बात की समझ हो, सोच हो कि दंपत्ति का योग्य होना जरुरी है.
#motivation
#spirituality
#hindi
#suvichar
#subscribetomychannel
#satsang
#nirankari
#universalbrotherhood
#vasudhaivakutumbakam
#bhakti
#bhaktisong
#nirankarivichar
#nirankarisong
#spiritual
#spiritualawakening
#god
#satguru
#awatarvani
#hardevvani
#aacharya
#aadhyatmik
#acharyprashant
6 сен 2024