शास्त्री लिखने से कुछ नहीं होता है महोदय ज्ञान दूसरी वस्तु है, आप ही गलत कहते हैं मही अर्थात पृथ्वी ठीक है सृष्टि से पहले पृथ्वी नहीं थी लेकिन आकाश सदैव था है और रहेगा यहाँ जो आप कहते हैं कि आकाश नहीं था लेकिन मैं ताल ठोक कर कहता हूँ कि आकाश था है और सदैव रहता है, उदाहरण से समझें जब कुछ नहीं था तब रिक्त अस्थान था और अर्थात खाली अस्थान मतलब शून्य, जैसे जहाँ हाथ और पैर लगे उसे आकाश कहा जाता है, और जब कुछ नहीं था तब खाली अस्थान था इसलिए आकाश था और ईश्वर को आकाश का स्वरूप कहा गया है