केवल कबीर साहेब ही पूर्ण ब्रह्म है अधिक जानकारी के लिए देखे रोजाना शाम को अवशय देखिए साधना टीवी चैनल पर 7:30से 8:30 ईश्वर टीवी चेनल पर 8:30से सुबह stv हरियाणा न्यूज चैनल पर 6:00 से 7:00तक
Sunil kaEvLaya कबीर,मुर्ख शब्द न मानई,धर्म न सुनै विचार | सत्य शब्द नहि खोजई,जावै जम के द्वार || (ब्राह्मण तो यहीपर सतयुग से कलियुग तक गलत ग्यान देकर जनता को मुर्ख बनये फिर रहे है) कबीर,वेद पढे पर भेद न जाने,बाचे पुराण अठारह | पथर का पूजा करे,भुल गये सिरजन हार ||
@@gopalmishra4140 कबीर को कुछ नि पता था बिचारे को राम नाम का दान मिला था।।कबीर ने कुछ नि लिखा।।ब्रह्मण सब नही होते सिर्फ ब्रह्म को जानने वाले को कहते है भजे राम भजे राम, राम भजे मूढ़मते।।। संप्राप्ते सन्निहिते काले, न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे।
कबीर दास परमेश्वर के दास थे, परमेश्वर नहीं थे Kabeer ke Dohe भारत में अपने अपने गुरूओं को ईश्वर घोषित करने वालों की एक बहुत बड़ी तादाद है। उनमें एक नाम श्री रामपाल जी का भी है। वे कबीरपंथी हैं और उन्हें जगतगुरू कहा जा रहा है। जगतगुरू के अज्ञान की हालत यह है कि उन्हें अपने गुरू का पूरा नाम और उसका अर्थ भी पता नहीं है। शॉर्ट में जिस हस्ती को कबीर कह दिया जाता है। उसका पूरा नाम कबीर दास है। कबीर अरबी में परमेश्वर का एक गुणवाचक नाम है जिसका अर्थ ‘बड़ा‘ है। दास शब्द हिन्दी का है, जिसका अर्थ ग़ुलाम है। कबीर दास नाम का अर्थ हुआ, ‘बड़े का दास‘ अर्थात ईश्वर का दास। कबीर दास ख़ुद को ज़िंदगी भर परमेश्वर का दास बताते रहे और लोगों ने उन्हें परमेश्वर घोषित कर दिया। श्री रामपाल जी भी यही कर रहे हैं। जिसे अपने गुरू के ही पूरे नाम का पता न हो, उसे परमेश्वर का और उसकी भक्ति का क्या पता होगा ? …लेकिन यह भारत है। यहां ऐसे लोगों की भारी भीड़ है। अज्ञानी लोग जगतगुरू बनकर दुनिया को भरमा रहे हैं। अगर कबीरपंथी भाई कबीर दास जी के पूरे नाम पर भी ठीक तरह ध्यान दे लें तो वे समझ लेंगे कि कबीर दास परमेश्वर नहीं हैं, जैसा कि अज्ञानी गुरू उन्हें बता रहे हैं। परमेश्वर से जुदा होने और उसका दास होने की हक़ीक़त स्वयं कबीर दास जी ने कितने ही दोहों में खोलकर भी बताई है। कबीर दोहावली में यह सब देखा जा सकता है। उनका पूरा नाम उनके मुख से ही सुन लीजिए- माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।। वह स्वयं परमेश्वर से प्रार्थना भी करते थे। वह कहते हैं कि साई इतना दीजिये जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाय।। एक दूसरी प्रार्थना में उनके भाव देख लीजिए- मैं अपराधी जन्म का, नख सिख भरा विकार। तुम दाता दुख भंजना, मेरी करो सम्हार।। कबीर दास जी रात में उठकर भी भगवान का भजन करते थे- कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान। जम जब घर ले जाएंगे, पड़ी रहेगी म्यान।। भजन में भी वे अपना नाम न लेकर राम का नाम लेते थे- लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।। राम के सामने कबीर दास जी अपनी हैसियत बताते हुए कहते हैं कि मेरे गले में राम की रस्सी बंधी है। वह जिधर खींचता है, मुझे उधर ही जाना पड़ता है अर्थात अपने ऊपर मेरा स्वयं का अधिकार नहीं है बल्कि राम का है। कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउँ। गलै राम की जेवड़ी, जित खैंचे ति�� जाऊँ।। राम नाम का ज्ञान भी उन्हें स्वयं से न था बल्कि यह ज्ञान उन्हें अपने गुरू से मिला था- गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरू आपनो, गोविंद दियो बताय।। इसमें कबीर दास जी स्वयं कह रहे हैं कि जब तक उनके गुरू ने उन्हें परमेश्वर के बारे में नहीं बताया था, तब तक उन्हें परमेश्वर का ज्ञान नहीं हुआ था। क्या यह संभव है कि परमेश्वर को कोई दूसरा बताए कि परमेश्वर कौन है ? कबीर दास जी कहते हैं कि अगर सतगुरू की कृपा न होती तो वे भी पत्थर की पूजा कर रहे होते- हम भी पाहन पूजते होते, बन के रोझ। सतगुरू की किरपा भई, सिर तैं उतरय्या बोझ।। क्या यह संभव है कि अगर परमेश्वर को सतगुरू न मिले तो वह भी अज्ञानियों की तरह पत्थर की पूजा करता रहे ? कबीर दास जी अपने गुरू के बारे में अपना अनुभव बताते हैं कि बलिहारी गुरू आपनो, घड़ी सौ सौ बार। मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।। कबीर दास जी की नज़र में परमेश्वर से भी बड़ा स्थान गुरू का है- कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरू को कहते और। हरि रूठै गुरू ठौर है, गुरू रूठै नहीं ठौर।। परमेश्वर और कबीर एक दूसरे से अलग वुजूद रखते हैं। उनके आराध्य राम उन्हें बैकुंठ अर्थात स्वर्ग में आने का बुलावा भेजते हैं तो वह रोने लगते हैं। उन्हें बैकुंठ से ज़्यादा सुख साधुओं की संगत में मिलता है। देखिए- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय। जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।। कबीर दास जी के इतने साफ़ बताने के बाद भी लोग उनकी बात उनके जीवन में भी नहीं समझते थे । उनके मरने के बाद भी लोगों ने उनसे उल्टा चलना नहीं छोड़ा। देखिए वह कहते हैं कि समझाय समझे नहीं, पर के साथ बिकाय। मैं खींचत हूं आपके, तू चला जमपुर जाय।।
ब्लफमास्टर नंबर.1.....रामपाल अंकल कलयुग अभी जवान है ५००० साल का...और जो महा पुरुष आयेगा वो ५५०० में आयेगा,आप तो उन १२ में से है जो नकली संत आयेंगे.....सभी १२का वही हाल होगा जो आपका हो रहा है