💔 मजाज़ 💔 तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई, वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए तड़पा भी गए (तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू = दुखी/ व्यथित दिल को आराम) , (सई = प्रयत्न, कोशिश) , (करम = कृपा, अनुग्रह) हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके यां हम ने ज़बाँ ही खोली थी, वाँ आँख झुकी शर्मा भी गए (अर्ज़-ए-वफ़ा = वादा पूरा करने का निवेदन) इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में सब ज़ाम-ब-क़फ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए (महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती = ख़ुशी और आनंद की महफ़िल), (अंजुमन-ए-इरफ़ानी = ज्ञान की सभा), (ज़ाम-ब-क़फ = शराब का गिलास हाथ में लेकर बैठना) -मजाज़ लखनवी इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर: अशुफ्तगी-ए-वहशत की कसम, हैरत की कसम, हसरत की कसम अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए (अशुफ्तगी-ए-वहशत = दीवानगी की घबराहट), (राज़-ए-तबस्सुम = मुस्कराहट का रहस्य) रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत उन से, हम क्या कहते क्यूँकर कहते एक हर्फ़ न निकला होटों से और आँख में आंसूं आ भी गए (रुदाद-ए-गम-ए-उल्फत = प्यार के दर्द का विवरण/ कहानी), (हर्फ़ = शब्द) अरबाब-ए-जुनूँ पे फ़ुरकत में, अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा आये थे सवाद-ए-उल्फत में, कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए (अरबाब-ए-जुनूँ = उन्माद की अवस्था में), (फ़ुरकत = वियोग/ जुदाई), (सवाद-ए-उल्फत = प्यार की गली) ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है, क्या फ़िक्र है तुझ को ऐ साक़ी महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई, कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए