“मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जां वलब, मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे। मैं ग़म-ए-जहां से निढाल हूँ, के सरापा दर्द-ओ- मलाल हूँ, जो लिखी है मेरे नसीब में, वो आलम किसी को खुदा न दे। न ये ज़िंदगी मेरी ज़िंदगी, न ये दास्तान मेरी दास्तान, मैं ख़याल-ओ-वहम से दूर हूँ, मुझे आज कोई सदा न दे। मेरे घर से दूर हैं राहतें, मुझे ढूंढती हैं मुसीबतें मुझे खौफ ये है के मेरा पता, कोई गर्दिशों को बता न दे। मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तिरा क्या भरोसा है चारागर, ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़तसर, मिरा दर्द और बढ़ा न दे। मेरा अज़्म इतना बुलंद है, के पराए शोलों का डर नहीं, मुझे खौफ़ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे। मेरे दाग़-ए-दिल से है रोशनी, इसी रोशनी से है ज़िंदगी, मुझे डर है ऐ मेरे चारागर, ये चिराग तू ही बुझा न दे। मेरे चश्म-ए-शौक तेरा भरम, रहे उम्र भर यूं ही ताज़ा दम, ना पुकार उस को के वो सनम, कहीं जल के जलवा दिखा न दे। दर-ए-यार पर बड़ी धूम है, वही आशिक़ों का हुजूम है, अभी नींद आई है हुस्न को, कोई शोर कर के जगा न दे। कभी जाम लब से लगा दिया, कभी मुस्करा के हटा दिया, तेरी छेड़-छाड़ ए साकिया, मेरी तिश्नगी को बढ़ा न दे। वो उठें हैं लेके खम- ओ- सुबू, अरे ए ‘शकील’ कहाँ हैं तू, तेरा जाम लेने को बज़्म में, कोई और हाथ बढ़ा न दे”।
Khushi ne mujh ko thukraya. Hai dard o gham ne pala hai. Mohabat me khayalo manzil hai naadani. jo in raho me lut jaye wahi taqdeer wala. charagha kar ke dil bahra hai kya jaha walo. Andhera lakh rawshan ho. phir bhi ujala ujala hai. kanaro se mujhe aai Naquda door hi rakh na. waha le kar chalo toifan jaha se ith ne wala hai. nashe man ke lut ne ka gham hota to kya gham tha. yeha to bechne walo ne gulshan bech dala hai.
I’m not a native Urdu speaker. I heard this song about 50 years ago and knew I wanted to understand and appreciate every word. The internet helped me decades later and now in my sixties I love this song all the more.
सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें किस के घर जाएँ कि इस वा'दा-शिकन को भूलें आज तक चोट दबाए नहीं दबती दिल की किस तरह उस सनम-ए-संग-बदन को भूलें अब सिवा इस के मुदावा-ए-ग़म-ए-दिल क्या है इतनी पी जाएँ कि हर रंज-ओ-मेहन को भूलें और तहज़ीब-ए-ग़म-ए-इश्क़ निभा दें कुछ दिन आख़िरी वक़्त में क्या अपने चलन को भूलें